Flood Plain Zoning

मुख्य सचिव श्री अमृत लाल मीणा की अध्यक्षता में हुई बैठक में बिहार में ‘Flood Plain Zoning ’ लागू करने की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा

  • जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव श्री संतोष कुमार मल्ल ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से दी ‘Flood Plain Zoning’ की विस्तृत जानकारी

बिहार में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए Flood Plain Zoning अपनाने की संभावनाओं और चुनौतियों से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक मुख्य सचिव श्री अमृत लाल मीणा की अध्यक्षता में हुई। जल संसाधन विभाग के स्तर पर आयोजित उक्त बैठक में जल संसाधन विभाग, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग और विधि विभाग के सचिव स्तर के एवं अन्य वरीय अधिकारियों ने भाग लिया।

बैठक में जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव श्री संतोष कुमार मल्ल ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से Flood Plain Zoning से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा Flood Plain Zoning को प्रचारित किया गया है। इसमें बाढ़ की प्रकृति और आवृत्ति के अनुसार विभिन्न नदियों की बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का वर्गीकरण और उनके उपयोग की सीमा तय की गई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने Flood Plain Zoning को बाढ़ प्रबंधन के लिए एक प्रभावी गैर-संरचनात्मक उपाय माना है।

बैठक में प्रधान सचिव श्री संतोष कुमार मल्ल ने भारत सरकार द्वारा Flood Plain Zoning के संबंध में उपलब्ध कराये गये ‘तकनीकी दिशा-निर्देशों के प्रारूप’ (Draft Technical guidelines) के अनुरूप बिहार में बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में होने वाले स्वीकृत और प्रतिबंधित विकास कार्यों तथा बिहार की परिस्थितियों के अनुरूप उसके प्रभाव की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बिहार में इसे लागू करने में पेश आने वाली संभावित चुनौतियों की विस्तृत चर्चा की, जिस पर बैठक में विचार-विमर्श किया गया।

विचार-विमर्श के दौरान मुख्य सचिव श्री अमृतलाल मीणा ने इस संबंध में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी से विस्तृत अध्ययन कराने और भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये ‘तकनीकी दिशा-निर्देशों के प्रारूप’ पर राज्य सरकार का मंतव्य उपलब्ध कराने के निर्देश दिये।

उल्लेखनीय है कि Flood Plain Zoning बाढ़ संभावित क्षेत्रों (Flood-prone area) के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है, जिसके तहत बाढ़ के जोखिम को कम करने और इन क्षेत्रों के सतत विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अलग-अलग क्षेत्रों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य उन क्षेत्रों का वर्गीकरण करना है, जो अलग-अलग स्तर की बाढ़ की आशंका या संभावना से प्रभावित हो सकते हैं। उन क्षेत्रों में विकास कार्यों की प्रकृति निर्धारित की जाती हैं, ताकि बाढ़ आने पर नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।

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